पुनःनिर्माण योग्य विमानन ईंधन (Sustainable Aviation Fuel – SAF) वाणिज्यिक विमानन उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण नवाचार बन गया है। जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने की आवश्यकता को देखते हुए, SAF एक प्रभावी समाधान प्रस्तुत करता है। यह पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में 80% तक कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करता है और कई स्रोतों जैसे जैविक अवशेषों, अपशिष्ट तेलों, तथा हाइड्रोजन आधारित संश्लेषण प्रक्रियाओं से निर्मित किया जा सकता है।
पुनःनिर्माण योग्य विमानन ईंधन (SAF) क्या है?
SAF एक प्रकार का वैकल्पिक विमानन ईंधन है जो पारंपरिक जीवाश्म आधारित जेट ईंधन की तुलना में अधिक पर्यावरणीय अनुकूल है। यह जैविक सामग्री, औद्योगिक अपशिष्ट, और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से तैयार किया जाता है। SAF की संरचना पारंपरिक जेट ईंधन जैसी ही होती है, जिससे इसे मौजूदा विमान इंजन में बिना किसी संशोधन के उपयोग किया जा सकता है।
- कम कार्बन फुटप्रिंट: पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में 50-80% तक कम CO2 उत्सर्जन।
- नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त: जैविक अवशेष, जल, अपशिष्ट तेल, और हाइड्रोजन आधारित संश्लेषण।
- इंजन संगतता: बिना किसी अतिरिक्त लागत के मौजूदा विमानों में उपयोग योग्य।
SAF के प्रमुख स्रोत
SAF विभिन्न प्रकार की पुनःनिर्माण योग्य सामग्रियों से तैयार किया जाता है। प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
- जैव ईंधन (Biofuels) – फसलों के अवशेष, खाद्य अपशिष्ट, तथा जैविक अवशेषों से प्राप्त।
- उन्नत संश्लेषण प्रक्रियाएं – हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड के संश्लेषण से।
- अपशिष्ट तेल (Waste Oils) – खाना पकाने के उपयोग में आए तेलों को पुनः चक्रित कर।
- म्युनिसिपल वेस्ट – ठोस कचरे से ईंधन उत्पादन।
SAF का वैश्विक विमानन उद्योग पर प्रभाव
पुनःनिर्माण योग्य विमानन ईंधन का उपयोग करने से कई सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं:
- पर्यावरणीय लाभ – वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में कमी।
- विमानन उद्योग में स्थिरता – पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की बढ़ती कीमतों से बचाव।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव – नए तकनीकी अनुसंधान और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश।
वैश्विक एयरलाइंस द्वारा SAF को अपनाने की प्रवृत्ति
अमेरिका, यूरोप, और एशिया की कई प्रमुख एयरलाइंस SAF के उपयोग को बढ़ावा दे रही हैं। उदाहरण के लिए:
- Boeing और Airbus ने SAF पर अनुसंधान को प्राथमिकता दी है।
- United Airlines और Lufthansa जैसी कंपनियां SAF मिश्रित ईंधन का उपयोग कर रही हैं।
SAF के उत्पादन की चुनौतियाँ और समाधान
हालांकि SAF पारंपरिक विमानन ईंधन का एक बेहतरीन विकल्प है, लेकिन इसके उत्पादन से संबंधित कुछ प्रमुख चुनौतियाँ भी हैं:
प्रमुख चुनौतियाँ:
- उच्च उत्पादन लागत – SAF का उत्पादन अभी भी पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में महंगा है।
- सीमित बुनियादी ढाँचा – कई देशों में SAF उत्पादन सुविधाएँ सीमित हैं।
- नियम और विनियम – SAF को मौजूदा विमानन ईंधन मानकों के अनुसार प्रमाणित करना आवश्यक है।
संभावित समाधान:
- सरकारी समर्थन और अनुदान – सरकारों को नवीकरणीय ईंधनों को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी प्रदान करनी चाहिए।
- तकनीकी उन्नति – जैव ईंधन और हाइड्रोजन आधारित SAF के नए अनुसंधान।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी – ऊर्जा कंपनियों और विमानन उद्योग के बीच सहयोग।
भविष्य की संभावनाएँ: क्या SAF विमानन का मुख्य ईंधन बन सकता है?
अगले कुछ दशकों में SAF को व्यापक रूप से अपनाए जाने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि 2050 तक विमानन उद्योग में 60-70% SAF मिश्रित ईंधन का उपयोग हो सकता है।
भविष्य की योजनाएँ:
- यूरोपीय संघ (EU) और अमेरिका SAF के उपयोग को अनिवार्य बनाने पर विचार कर रहे हैं।
- ICAO (International Civil Aviation Organization) ने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल विमानन लक्ष्य की घोषणा की है।
- भारत, चीन, और जापान SAF अनुसंधान और उत्पादन में भारी निवेश कर रहे हैं।
6imz_ SAF और हाइड्रोजन आधारित विमानन ईंधन की तुलना
पुनःनिर्माण योग्य विमानन ईंधन और हाइड्रोजन आधारित विमानन ईंधन के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं:
| विशेषता | SAF | हाइड्रोजन ईंधन |
|———|—–|————–|
| स्रोत | जैविक अवशेष, अपशिष्ट तेल | जल से इलेक्ट्रोलिसिस |
| CO2 उत्सर्जन | 50-80% तक कम | लगभग शून्य |
| मौजूदा इंजन में उपयोग | हाँ | नहीं, नए इंजन की आवश्यकता |
| लॉजिस्टिक्स | मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ संगत | हाइड्रोजन स्टोरेज सिस्टम की आवश्यकता |
निष्कर्ष
SAF विमानन उद्योग को एक पर्यावरण-अनुकूल दिशा में ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हालांकि इसके उत्पादन में कुछ चुनौतियाँ हैं, लेकिन बढ़ती तकनीकी उन्नति और वैश्विक निवेश से इन समस्याओं को हल किया जा सकता है। यदि SAF को बड़े पैमाने पर अपनाया जाता है, तो यह न केवल जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करेगा बल्कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में भी सहायक सिद्ध होगा।
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